Bishnoi Caste :- भारतवर्ष में अनगिनत जाति के लोग रहते हैं, जिनका अपना इतिहास है और वह अपने आप में बेहद महत्वपूर्ण है।
आज हम भारत के Bishnoi caste ( Bishnoi caste का क्या मतलब है ? ) के बारे में बात करने वाले हैं।
यह भारत की एक ऐसा जाती है, जो राजस्थान के पश्चिम भाग में बसी हुई है। यह जाति वृक्षों, प्राणी और पर्यावरण के संरक्षण को अपना मूल मंत्र मानती है।
इस लेख में आज हम विश्नोई जाति का इतिहास, उनके धर्म, परंपरा और संस्कृति से जुड़ी महत्वपूर्ण बातों की जानकारी देंगे। साथ ही साथ हम यहां बिश्नोई जाति के गोत्र तथा उनकी जीवन शैली के बारे में भी विस्तार से बताएंगे।
Bishnoi Caste in Hindi – Bishnoi caste का क्या मतलब है ?
बिश्नोई भारत में रहने वाली एक जाती है, जो भारत के विभिन्न राज्यों में निवास करती है। बिश्नोई समुदाय के लोगों के पास अपनी अलग पहचान और संस्कृति होती है।
इनकी जाति का नाम वृक्षों की रक्षा और संरक्षण से जुड़ा होता है। बिश्नोई जाति का मूल नाम बिश्नोई है, जो कि संस्कृत शब्द विष्णु से आया है, जिसका मतलब होता है ‘विष्णु के लोग’। बिश्नोई जाति के लोग वैष्णव संप्रदाय से जुड़े हैं।
इस जाति के लोग धर्मनिरपेक्ष होते हैं और अपनी परंपरागत वैदिक धर्म के साथ-साथ वन्यजीवों, पेड़ पौधों और अन्य प्राकृतिक आवासों की संरक्षा का भी ख्याल रखते हैं।
बिश्नोई शब्द संस्कृत भाषा के दो शब्दों से मिलकर बना है ‘बीस नौ’ जिसका मतलब होता है, ‘नियमो का पालन करने वाला’।
इस जाति के लोगों को पर्यावरण और प्रकृति के संरक्षण में विशेष रूप से दिलचस्पी होती है। यह लोग अपनी संस्कृति अनुशासन और आध्यात्मिकता के लिए भी विश्व भर में जाने जाते हैं।
बिश्नोई शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई ?
बिश्नोई शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के ‘बीस (20), नौ (9)’ शब्द से हुई है जिसका मतलब होता है नियमों का पालन करने वाला।
बिश्नोई जाति ने 29 नियमों का पालन करने के लिए अपनी जाति को ऐसे समुदाय के रूप में संगठित किया है, जो मानवता, पर्यावरण और जीवन के साथ संगठित होता है।
बिश्नोई जाति का नाम बिश्नोई समुदाय के संस्थापक संत जंभेश्वर जी महाराज द्वारा किया गया था। जंभेश्वर जी महाराज ने 15 वीं सदी में बिश्नोई जाति का नाम स्थापित किया था।
गुरु जंभेश्वर लाल बिश्नोई ने अपने समुदाय के लोगों को 29 नियमों का पालन करने के लिए प्रोत्साहित किया था, जो उनके पर्यावरण और जीवन की संरक्षा के लिए महत्वपूर्ण थे। इन नियमों में पेड़ पौधों की रक्षा और संरक्षण के साथ-साथ पशुओं की रक्षा भी शामिल थी।
इस प्रकार बिश्नोई शब्द की उत्पत्ति 29 नियमों के पालन के लिए संगठित हुई, जो इस समुदाय से जुड़ी हुई थी। गुरु जंभेश्वर जी ने जंगलों के संरक्षण को अपना धर्म माना था और अनुयायियों को भी यही समझाया था, कि वह अपनी जाति और समाज के साथ संगठित होकर जंगलों की संरक्षण के लिए काम करें।
बिश्नोई जाति का इतिहास क्या है ?
बिश्नोई जाति का इतिहास काफी प्राचीन है। इस जाति का इतिहास उत्तर भारत के राजस्थान राज्य के मारवाड़ में संबंधित है। बिश्नोई जाति को जंभेश्वर बिश्नोई ने स्थापित किया था, लेकिन इससे पहले भी यह जाति एक अलग समुदाय के रूप में मौजूद थी।
बिश्नोई जाति के इतिहास के अनुसार यह जाति धर्म परंपरा और संस्कृति के लिए जानी जाती है। इस जाति की उत्पत्ति बहुत पुरानी है और इसका इतिहास तब से चलता आ रहा है, जब संसार की स्थापना हुई थी।
बिश्नोई जाति के लोग अपने धर्म और उनके विशेष रूप से पर्यावरण और जीवन के संरक्षण के लिए जाने जाते हैं।
बिश्नोई जाति का इतिहास उनके धर्म और परंपराओं से जुड़ा हुआ है, जो अधिकतर उनके समुदाय के लोगों के लिए धार्मिक आदर्श और मार्गदर्शक होते हैं।
बिश्नोई जाति के अनुसार इस समुदाय की उत्पत्ति मेवाड़ में 15वीं शताब्दी के दौरान हुई थी। इस समय मेवाड़ क्षेत्र में एक शांति दूत संत जंभेश्वर लाल बिश्नोई ने यह जाति की स्थापना की थी।
जंभेश्वर लाल बिश्नोई ने इस समुदाय को अनुशासन और सदाचार के साथ जीने के लिए उत्साहित किया था। वह धर्म और संस्कृति के लिए अपने लोगों के बीच समानता को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध थे।
बिश्नोई जाति के 29 नियम क्या है ?
बिश्नोई जाति की उत्पत्ति जंभेश्वर जी महाराज द्वारा की गई थी। यह नाम ‘बीस (20), नौ (9)’ शब्द से मिलकर बना है, जिसका मतलब होता है नियमों का पालन करने वाला।
विश्नोई जाति के कुल 29 नियम है, जिन्हें वे अपनी जीवनशैली में पालन करते हैं। यह नियम अपने आप को प्रकृति और सभी जीवो के साथ संबंध रखने के लिए बनाए हुए हैं। हम यहां नीचे बिश्नोई जाति के 29 नियमों के बारे में बता रहे हैं। जैसे कि :-
- दुश्मन की आवाज को नहीं सुनेंगे अर्थात् आलोचना को नजरअंदाज करेंगे
- जूते नहीं पहनेंगे
- कभी भी झूठ नहीं बोलेंगे
- चोरी नहीं करेंगे
- जंगल के पेड़ पौधों को काटने से रोकेंगे
- जंगल के जानवरों का बलात्कार नहीं करेंगे
- विद्या दान देंगे
- धर्म दान देंगे
- अन्न दान देंगे
- अन्य दान भी देंगे
- महिलाओं का सम्मान करेंगे
- प्राण बचाएंगे
- प्राकृतिक वातावरण को संरक्षित रखेंगे
- दूषित पानी नहीं पिएंगे
- दूषित खान पान नहीं करेंगे
- आत्मक प्रशिक्षण करेंगे
- आश्रमों में जाकर धर्म का अध्ययन करेंगे
- सभी जीवो को प्रेम करेंगे
- आपस में भाईचारे की भावना रखेंगे
- एक दूसरे की मदद करेंगे
- अन्य जातियों का सम्मान करेंगे
- नस्लवाद को नहीं मानेंगे
- बारिश के बाद अवश्य जमीन को खुरचाकर बचाएंगे
- लोगों की मदद करेंगे
- धरती माता को सम्मान देंगे
- आग नहीं जलाएंगे
- शौचालय का उपयोग अनिवार्य रखेंगे
- धर्म-कर्म को निरंतर अपनाएंगे
- इन नियमों को पालन करते हुए अपनी जिंदगी बिताएंगे।
यह नियम बिश्नोई जाति की संस्कृति का अहम हिस्सा है। जो उनके जीवन शैली और संबंधों को बेहतर बनाने में मदद करते हैं। इन नियमों को पालन करते हुए वे प्रकृति और समाज के साथ बेहतर संबंध बनाते हैं।
बिश्नोई जाति द्वारा खेजड़ली बलिदान
बिश्नोई समाज द्वारा खेजड़ली बलिदान एक ऐसी घटना है, जिसे कभी भी भुलाया नहीं जा सकता। यह घटना 12 सितंबर 1730 की है, जब जोधपुर के महाराजा ने हरे भरे खेजड़ी वृक्षो को काटने का ऐलान किया था।
यह घटना राजस्थान के जोधपुर जिले के खेजड़ली ग्राम के रामदेवजी मंदिर के पास की है। जहां अमृता देवी बिश्नोई के नेतृत्व में हरे और लहलहाते खेजड़ी के वृक्षों को काटने से रोकने के लिए चौरासी गाँवों से बिश्नोई समाज के तकरीबन 363 लोगों ने पेड़ों से चिपक कर अपने प्राणों की आहुति दे दी थी।
मारवाड़ के महाराजा अभय सिंह की इच्छा मेहरानगढ़ फोर्ट में फूल महल बनाने की थी, जिसके लिए उन्होंने खेजड़ी के हरे भरे वृक्षों को काटने का आदेश अपने सैनिकों को दिया।
यह बात बिश्नोई समाज के लोगों को कतई पसंद नहीं आई और उन्होंने महाराजा से वृक्ष ना काटने की अपील की, लेकिन महाराजा ने अपना निर्णय नहीं बदला।
हालाकि बिश्नोई समाज के लोगों ने इसका विरोध भी किया लेकिन महाराजा ने उनकी बात नहीं मानी। बिश्नोई समाज के लोग इन पेड़ों से चिपक कर खड़े रहे, ताकि उन्हें ना काटा जा सके परंतु ऐसा नहीं हुआ और हरे भरे वृक्षों को बचाने के लिए बिश्नोई समाज के 363 लोगों ने अपनी जान दे दी।
यह घटना बिश्नोई समुदाय के लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण ऊर्जा स्रोत बन गई, जो उन्हें अपने संस्कृति, धर्म और प्राकृतिक संरक्षण के आदर्शों का पालन करने के लिए प्रेरित करती है।
खेजड़ली बलिदान की इस घटना को बिश्नोई समुदाय का एक महान ऐतिहासिक घटना के रूप माना जाता है और यह उनके संस्कृति और धर्म का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है।
FAQ’S:-
Q1. खेजड़ली बलिदान की घटना कब हुई थी ?
Ans - खेजड़ली बलिदान की घटना 1730 में राजस्थान के जोधपुर जिले में हुई थी।
Q2. बिश्नोई समुदाय कौन है ?
Ans - बिश्नोई समुदाय राजस्थान में रहने वाले धार्मिक और सामाजिक समुदाय है, जो प्रकृति के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते हैं और वातावरण संरक्षण के लिए अपने पूर्वजों के दिए गए नियमों का पालन करते हैं।
Q3. बिश्नोई समाज का धर्म क्या है ?
Ans - बिश्नोई समुदाय के लोगों का धर्म एक स्वतंत्र धर्म है, जो कि शाकाहारी होते हैं और प्राकृतिक की रक्षा करते हैं।
Q4. बिश्नोई समुदाय के लोग क्या करते हैं ?
Ans - बिश्नोई समुदाय के अधिकतर लोग कृषि, खेती- बाडी, डेयरी फार्मिंग, पशुपालन आदि जैसे व्यवसायों से जुड़े होते हैं।
Q5. बिश्नोई समुदाय के लोगों का पवित्र स्थल कौन सा है ?
Ans - बिश्नोई समुदाय के लोगों का पवित्र स्थल है, जंभेश्वर जी मंदिर, मुण्डेश्वर महादेव मंदिर, घनश्याम जी मंदिर आदि।
निष्कर्ष :-
आज का यह लेख Bishnoi Caste in Hindi ( Bishnoi caste का क्या मतलब है ? ) यही पर समाप्त होता है। आज के इस लेख में हमने आपको बिश्नोई जाति से संबंधित तमाम जानकारी दी है।
उम्मीद करते हैं, इस लेख के माध्यम से आपको बिश्नोई जाति के बारे में बहुत कुछ नया जानने और समझने को मिला होगा।
इसी के साथ यदि आपको यह लेख पसंद आया हो, तो इसे अपने दोस्तों और विभिन्न लोगों के साथ शेयर करें। यदि इस विषय से संबंधित आपको और अधिक जानकारी चाहिए या आप कुछ नया जानना चाहते हैं, तो नीचे कमेंट के माध्यम से हमें कह सकते हैं।
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